तुलसी माला की महिमा - एक
सत्य घटना।
राजस्थान में जयपुर के पास एक इलाका है
–
लदाणा। पहले वह एक छोटी सी रियासत
थी।
उसका राजा एक बार शाम के समय
बैठा हुआ था।
उसका एक मुसलमान नौकर किसी काम से
वहाँ आया। राजा की दृष्टि अचानक उसके
गले में
पड़ी तुलसी की माला पर गयी। राजा ने
चकित
होकर पूछाः "क्या बात है, क्या तू हिन्दू
बन
गया है ?" "नहीं, हिन्दू नहीं बना हूँ।"
"तो फिर
तुलसी की माला क्यों डाल रखी है ?"
"राजासाहब !
तुलसी की माला की बड़ी महिमा है।"
"क्या महिमा है ?" "राजासाहब ! मैं
आपको एक
सत्य घटना सुनाता हूँ। एक बार मैं अपने
ननिहाल
जा रहा था। सूरज ढलने को था। इतने में
मुझे
दो छाया-पुरुष दिखाई दिये, जिनको हिन्दू
लोग
यमदूत बोलते हैं।
उनकी डरावनी आकृति देखकर मैं
घबरा गया। तब उन्होंने कहाः "तेरी मौत
नहीं है।
अभी एक युवक किसान बैलगाड़ी भगाता-
भगाता आयेगा। यह जो गड्ढा है उसमें
उसकी बैलगाड़ी का पहिया फँसेगा और
बैलों के कंधे
पर रखा जुआ टूट जायेगा। बैलों को प्रेरित
करके
हम उद्दण्ड बनायेंगे, तब उनमें से
जो दायीं ओर
का बैल होगा, वह विशेष उद्दण्ड होकर
युवक
किसान के पेट में अपना सींग घुसा देगा और
इसी निमित्त से उसकी मृत्यु हो जायेगी।
हम
उसी का जीवात्मा लेने आये हैं।"
राजासाहब !
खुदा की कसम, मैंने उन यमदूतों से हाथ
जोड़कर
प्रार्थना की कि 'यह घटना देखने की मुझे
इजाजत
मिल जाय।' उन्होंने इजाजत दे दी और मैं
दूर एक
पेड़ के पीछे खड़ा हो गया। थोड़ी ही देर में
उस
कच्चे रास्ते से बैलगाड़ी दौड़ती हुई
आयी और
जैसा उन्होंने कहा था ठीक वैसे
ही बैलगाड़ी को झटका लगा, बैल उत्तेजित
हुए,
युवक किसान उन पर नियंत्रण पाने में
असफल
रहा। बैल धक्का मारते-मारते उसे दूर ले
गये और
बुरी तरह से उसके पेट में सींग घुसेड़
दिया और वह
मर गया।" राजाः "फिर क्या हुआ ?"
नौकरः "हजूर !
लड़के की मौत के बाद मैं पेड़ की ओट से
बाहर
आया और दूतों से पूछाः 'इसकी रूह
(जीवात्मा)
कहाँ है, कैसी है ?" वे बोलेः 'वह जीव हमारे
हाथ
नहीं आया। मृत्यु तो जिस निमित्त से थी,
हुई किंतु
वहाँ हुई जहाँ तुलसी का पौधा था।
जहाँ तुलसी होती है वहाँ मृत्यु होने पर जीव
भगवान श्रीहरि के धाम में जाता है।
पार्षद आकर
उसे ले जाते हैं।' हुजूर ! तबसे मुझे ऐसा हुआ
कि मरने के बाद मैं बिहिश्त में
जाऊँगा कि दोजख में
यह मुझे पता नहीं, इसले
तुलसी की माला तो पहन
लूँ ताकि कम से कम आपके भगवान
नारायण के धाम
में जाने का तो मौका मिल ही जायेगा और
तभी से मैं
तुलसी की माला पहनने लगा।' कैसी दिव्य
महिमा है
तुलसी-माला धारण करने की ! इसीलिए
हिन्दुओं में
किसी का अंत समय उपस्थित होने पर
उसके मुख में
तुलसी का पत्ता और गंगाजल
डाला जाता है,
ताकि जीव की सदगति हो जाय।
— सत्य घटना।
राजस्थान में जयपुर के पास एक इलाका है
–
लदाणा। पहले वह एक छोटी सी रियासत
थी।
उसका राजा एक बार शाम के समय
बैठा हुआ था।
उसका एक मुसलमान नौकर किसी काम से
वहाँ आया। राजा की दृष्टि अचानक उसके
गले में
पड़ी तुलसी की माला पर गयी। राजा ने
चकित
होकर पूछाः "क्या बात है, क्या तू हिन्दू
बन
गया है ?" "नहीं, हिन्दू नहीं बना हूँ।"
"तो फिर
तुलसी की माला क्यों डाल रखी है ?"
"राजासाहब !
तुलसी की माला की बड़ी महिमा है।"
"क्या महिमा है ?" "राजासाहब ! मैं
आपको एक
सत्य घटना सुनाता हूँ। एक बार मैं अपने
ननिहाल
जा रहा था। सूरज ढलने को था। इतने में
मुझे
दो छाया-पुरुष दिखाई दिये, जिनको हिन्दू
लोग
यमदूत बोलते हैं।
उनकी डरावनी आकृति देखकर मैं
घबरा गया। तब उन्होंने कहाः "तेरी मौत
नहीं है।
अभी एक युवक किसान बैलगाड़ी भगाता-
भगाता आयेगा। यह जो गड्ढा है उसमें
उसकी बैलगाड़ी का पहिया फँसेगा और
बैलों के कंधे
पर रखा जुआ टूट जायेगा। बैलों को प्रेरित
करके
हम उद्दण्ड बनायेंगे, तब उनमें से
जो दायीं ओर
का बैल होगा, वह विशेष उद्दण्ड होकर
युवक
किसान के पेट में अपना सींग घुसा देगा और
इसी निमित्त से उसकी मृत्यु हो जायेगी।
हम
उसी का जीवात्मा लेने आये हैं।"
राजासाहब !
खुदा की कसम, मैंने उन यमदूतों से हाथ
जोड़कर
प्रार्थना की कि 'यह घटना देखने की मुझे
इजाजत
मिल जाय।' उन्होंने इजाजत दे दी और मैं
दूर एक
पेड़ के पीछे खड़ा हो गया। थोड़ी ही देर में
उस
कच्चे रास्ते से बैलगाड़ी दौड़ती हुई
आयी और
जैसा उन्होंने कहा था ठीक वैसे
ही बैलगाड़ी को झटका लगा, बैल उत्तेजित
हुए,
युवक किसान उन पर नियंत्रण पाने में
असफल
रहा। बैल धक्का मारते-मारते उसे दूर ले
गये और
बुरी तरह से उसके पेट में सींग घुसेड़
दिया और वह
मर गया।" राजाः "फिर क्या हुआ ?"
नौकरः "हजूर !
लड़के की मौत के बाद मैं पेड़ की ओट से
बाहर
आया और दूतों से पूछाः 'इसकी रूह
(जीवात्मा)
कहाँ है, कैसी है ?" वे बोलेः 'वह जीव हमारे
हाथ
नहीं आया। मृत्यु तो जिस निमित्त से थी,
हुई किंतु
वहाँ हुई जहाँ तुलसी का पौधा था।
जहाँ तुलसी होती है वहाँ मृत्यु होने पर जीव
भगवान श्रीहरि के धाम में जाता है।
पार्षद आकर
उसे ले जाते हैं।' हुजूर ! तबसे मुझे ऐसा हुआ
कि मरने के बाद मैं बिहिश्त में
जाऊँगा कि दोजख में
यह मुझे पता नहीं, इसले
तुलसी की माला तो पहन
लूँ ताकि कम से कम आपके भगवान
नारायण के धाम
में जाने का तो मौका मिल ही जायेगा और
तभी से मैं
तुलसी की माला पहनने लगा।' कैसी दिव्य
महिमा है
तुलसी-माला धारण करने की ! इसीलिए
हिन्दुओं में
किसी का अंत समय उपस्थित होने पर
उसके मुख में
तुलसी का पत्ता और गंगाजल
डाला जाता है,
ताकि जीव की सदगति हो जाय।
परोपकाराय फलन्ति वृक्षा: परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकाराय इदं शरीरम्।।
( hari krishnamurthy K. HARIHARAN)"
'' When people hurt you Over and Over
think of them as Sand paper.
They Scratch & hurt you,
but in the end you are polished and they are finished. ''
think of them as Sand paper.
They Scratch & hurt you,
but in the end you are polished and they are finished. ''
யாம் பெற்ற இன்பம் பெருக வையகம்
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