Wednesday, 22 October 2014

सतगुरु का सत्संग





सतगुरु का सत्संग एक स्टेशन की तरह है जहाँ से हमें परमात्मा के घर ले जाने वाला मार्ग, मार्ग दर्शक सतगुरु और वाहन मिलता है । सतगुरु हम पर दया करके हमें परमात्मा के घर जाने की टिकट देते हैं जिसे हम नामदान या गुरुमंत्र कहते हैं । जब हम टिकट लेकर उस शब्द रुपी गाडी का सच्चे मन से ध्यान करते हैं तो वह शब्द रुपी गाडी हमारे स्टेशन पर रुक जाती है ताकि हम उस पर चढ़ सके और अपना रूहानी सफर तय कर सकें । लेकिन इस रूहानी सफर की मंजिल तक पहुँचने के लिए हमें काल रुपी समय का एक एक क्षण गुरु के ध्यान भक्ति में लगाए रखना पड़ता है क्योंकि जब तक हम समय के ईंधन का सही प्रयोग करते रहेंगे तो हमारी गाडी रूहानी सफर पर चलती रहेगी । हमें सतगुरु द्वारा समझाए गए जीवन जीने के नियमरूपी पटरी पर ही अपनी गाडी रखनी है ताकि हमारे रूहानी सफर पर कोई दुर्घटना ना हो । सतगुरु हमेशा इस रूहानी सफर पर हमारे साथ रहते हैं ताकि हम अपने निज घर सतलोक (सचखंड) पहुँच सकें और परमपिता परमात्मा में समा कर अनंत शान्ति को प्राप्त हो जाएं 

 परोपकाराय फलन्ति वृक्षा: परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
 परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकाराय इदं शरीरम्।।
            
 
 
                                          ( hari krishnamurthy K. HARIHARAN)"
'' When people hurt you Over and Over think of them as Sand paper.
They Scratch & hurt you, but in the end you are polished and they are finished. ''
யாம் பெற்ற இன்பம் 
பெருக  வையகம் 
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