श्रीमद् भागवत पुराण यहां से होता है शुरू...
श्रीमद् भागवत महापुराण की शुरुआत महात्म्य से होती है ।
ऐसी मान्यता है कि हर ग्रंथ के पाठ से पहले उसके महात्म्य की बात की जाती है ।
महात्म्य का अर्थ होता है महत्व, कुछ विद्वान इसका अर्थ महानता से भी लेते हैं ।
श्रीमद् भागवत में महात्म्य के छह अध्याय हैं ।
इसमें मुख्य पात्र सूतजी, शौनकजी आदि ऋषि, व्यासजी, नारदजी, शुकदेवजी, धुंधकारी व गोकर्ण है ।
भागवत में कुल 12 स्कंध हैं ।
माहात्म्य इनके अतिरिक्त है ।
माहात्म्य सबसे पहले बताया गया है ।
छह छोटे अध्यायों में बंटे माहात्म्य की कथा नारदजी की भक्ति से भेंट के साथ शुरू होती है ।
नारदजी पृथ्वी पर आते हैं और कलियुग में पृथ्वी की दुर्दशा देखकर दु:खी होते हैं ।
तब यमुना के तट पर उन्हें एक स्त्री दिखाई देती है ।
पूछने पर पता चलता है वह भक्ति है ।
उसके साथ दो पुत्र भी मिलते हैं जो थके हुए हैं ।
एक ज्ञान है दूसरा वैराग्य ।
भक्ति के निवेदन पर नारदजी दोनों पुत्रों को नींद से जगाते हैं और उनकी थकान दूर करते हैं ।
कलियुग में धर्म की स्थापना के लिए भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को भागवत का माहात्म्य बताया जाता है और तीनों संतुष्ट होते हैं ।
इसी के साथ माहात्म्य की कथा आगे बढ़ती है ।
इसी में आत्मदेव का प्रसंग है ।
आत्मदेव एक ब्राम्हण था ।
उसकी पत्नी धुंधुलि झगड़ालु थी ।
दोनों नि:संतान थे ।
एक दिन संतान न होने पर द़ु:खी आत्मदेव को एक संन्यासी मिला ।
संन्यासी ने आत्मदेव को एक फल दिया और कहा कि इसे पत्नी को खिलाना, तब पुत्र की प्राप्ति होगी ।
आत्मदेव ने फल अपनी पत्नी धुंधुलि को दिया लेकिन धुंधुलि ने फल खुद न खाते हुए अपनी बहन को दे दिया ।
बहन पहले से गर्भवती थी ।
उसने वह फल गाय को खिला दिया ।
कुछ समय बाद बहन को पुत्र हुआ और उसने वह पुत्र अपनी बहन धुंधुलि को दे दिया ।
आत्मदेव और धुंधुलि के इस पुत्र का नाम धुंधुकारी रखा गया ।
इधर जिस गाय को संन्यासी का दिया फल खिलाया गया था उसने भी मनुष्य रूप में एक शिशु को जन्म दिया । इसका नाम गोकर्ण रखा गया ।
दोनों बालक धुंधुकारी और गोकर्ण साथ पले-बढ़े ।
गोकर्ण ज्ञानी हुआ तो धुंधुकारी दुष्ट निकला ।
धुंधुकारी ने बुरी संगत में पड़कर पिता की सारी संपत्ति नष्ट कर दी ।
उसके ऐसे आचरण से दु:खी पिता आत्मदेव को दूसरे पुत्र गोकर्ण ने समझाइश दी और आत्मदेव मोह त्यागकर वन में चले गए ।
इधर धुंधुकारी ने अपनी मां को पीटना शुरू किया ।
वह पांच वेश्याओं के चक्कर में पड़ गया ।
वेश्याओं ने उससे धन व आभूषण मांगे और नहीं देने पर उसकी हत्या कर दी ।
धुंधुकारी प्रेत बना ।
कुछ समय बाद गोकर्ण की अपने प्रेत बने भाई से मुलाकात हुई ।
तब गोकर्ण ने अपने प्रेत भाई धुंधुकारी को भागवत की कथा सुनाई और उसकी मुक्ति हुई ।
इस तरह भागवत के इस माहात्म्य के स्कंध में गोकर्ण और धुंधुकारी की कथा के माध्यम से भागवत सुनने के फायदे बताए गए हैं ।
धुंधुकारी जिन पांच वेश्याओं के चक्कर में थे वे प्रतीक रूप में इंद्रियां हैं ।
इंद्रियों के वश में पड़े धुंधुकारी का नाश हुआ और वह अकाल मृत्यु मर कर प्रेत बना ।
उसी का भाई गोकर्ण ज्ञानी हुआ और भागवत सुनाकर उसने अपने प्रेत भाई को मुक्त किया ।
█▬█ █ ▀█▀ ⓁⒾⓀⒺ ----►►https://www.facebook.com/BhagvatR
╔
╬╔╗║║╔╗╗╗╗
╝╚╝╚╚╚╝╚╩╝ ----►► @SBhagvatR
Visit Us On → http://only4hinduism.blogspot.in/
'' When people hurt you Over and Over think of them as Sand paper.They Scratch & hurt you, but in the end you are polished and they are finished. ''
No comments:
Post a Comment