Monday, 27 October 2014

तब गोकर्ण ने अपने प्रेत भाई धुंधुकारी को भागवत की कथा सुनाई और उसकी मुक्ति हुई ।





श्रीमद् भागवत पुराण यहां से होता है शुरू...       श्रीमद् भागवत महापुराण की शुरुआत महात्म्य से होती है ।   ऐसी मान्यता है कि हर ग्रंथ के पाठ से पहले उसके महात्म्य की बात की जाती है ।   महात्म्य का अर्थ होता है महत्व, कुछ विद्वान इसका अर्थ महानता से भी लेते हैं ।   श्रीमद् भागवत में महात्म्य के छह अध्याय हैं ।   इसमें मुख्य पात्र सूतजी, शौनकजी आदि ऋषि, व्यासजी, नारदजी, शुकदेवजी, धुंधकारी व गोकर्ण है ।    भागवत में कुल 12 स्कंध हैं ।   माहात्म्य इनके अतिरिक्त है ।   माहात्म्य सबसे पहले बताया गया है ।   छह छोटे अध्यायों में बंटे माहात्म्य की कथा नारदजी की भक्ति से भेंट के साथ शुरू होती है ।   नारदजी पृथ्वी पर आते हैं और कलियुग में पृथ्वी की दुर्दशा देखकर दु:खी होते हैं ।   तब यमुना के तट पर उन्हें एक स्त्री दिखाई देती है ।   पूछने पर पता चलता है वह भक्ति है ।   उसके साथ दो पुत्र भी मिलते हैं जो थके हुए हैं ।   एक ज्ञान है दूसरा वैराग्य ।   भक्ति के निवेदन पर नारदजी दोनों पुत्रों को नींद से जगाते हैं और उनकी थकान दूर करते हैं ।   कलियुग में धर्म की स्थापना के लिए भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को भागवत का माहात्म्य बताया जाता है और तीनों संतुष्ट होते हैं ।   इसी के साथ माहात्म्य की कथा आगे बढ़ती है ।   इसी में आत्मदेव का प्रसंग है ।   आत्मदेव एक ब्राम्हण था ।   उसकी पत्नी धुंधुलि झगड़ालु थी ।   दोनों नि:संतान थे ।   एक दिन संतान न होने पर द़ु:खी आत्मदेव को एक संन्यासी मिला ।   संन्यासी ने आत्मदेव को एक फल दिया और कहा कि इसे पत्नी को खिलाना, तब पुत्र की प्राप्ति होगी ।   आत्मदेव ने फल अपनी पत्नी धुंधुलि को दिया लेकिन धुंधुलि ने फल खुद न खाते हुए अपनी बहन को दे दिया ।     बहन पहले से गर्भवती थी ।   उसने वह फल गाय को खिला दिया ।   कुछ समय बाद बहन को पुत्र हुआ और उसने वह पुत्र अपनी बहन धुंधुलि को दे दिया ।   आत्मदेव और धुंधुलि के इस पुत्र का नाम धुंधुकारी रखा गया ।   इधर जिस गाय को संन्यासी का दिया फल खिलाया गया था उसने भी मनुष्य रूप में एक शिशु को जन्म दिया । इसका नाम गोकर्ण रखा गया ।   दोनों बालक धुंधुकारी और गोकर्ण साथ पले-बढ़े ।   गोकर्ण ज्ञानी हुआ तो धुंधुकारी दुष्ट निकला ।   धुंधुकारी ने बुरी संगत में पड़कर पिता की सारी संपत्ति नष्ट कर दी ।   उसके ऐसे आचरण से दु:खी पिता आत्मदेव को दूसरे पुत्र गोकर्ण ने समझाइश दी और आत्मदेव मोह त्यागकर वन में चले गए ।   इधर धुंधुकारी ने अपनी मां को पीटना शुरू किया ।   वह पांच वेश्याओं के चक्कर में पड़ गया ।   वेश्याओं ने उससे धन व आभूषण मांगे और नहीं देने पर उसकी हत्या कर दी ।   धुंधुकारी प्रेत बना ।   कुछ समय बाद गोकर्ण की अपने प्रेत बने भाई से मुलाकात हुई ।   तब गोकर्ण ने अपने प्रेत भाई धुंधुकारी को भागवत की कथा सुनाई और उसकी मुक्ति हुई ।   इस तरह भागवत के इस माहात्म्य के स्कंध में गोकर्ण और धुंधुकारी की कथा के माध्यम से भागवत सुनने के फायदे बताए गए हैं ।   धुंधुकारी जिन पांच वेश्याओं के चक्कर में थे वे प्रतीक रूप में इंद्रियां हैं ।   इंद्रियों के वश में पड़े धुंधुकारी का नाश हुआ और वह अकाल मृत्यु मर कर प्रेत बना ।   उसी का भाई गोकर्ण ज्ञानी हुआ और भागवत सुनाकर उसने अपने प्रेत भाई को मुक्त किया ।     █▬█ █ ▀█▀ ⓁⒾⓀⒺ ----►►https://www.facebook.com/BhagvatR  ╔  ╬╔╗║║╔╗╗╗╗  ╝╚╝╚╚╚╝╚╩╝ ----►► @SBhagvatR     Visit Us On → http://only4hinduism.blogspot.in/

श्रीमद् भागवत पुराण यहां से होता है शुरू...

श्रीमद् भागवत महापुराण की शुरुआत महात्म्य से होती है । 
ऐसी मान्यता है कि हर ग्रंथ के पाठ से पहले उसके महात्म्य की बात की जाती है । 
महात्म्य का अर्थ होता है महत्व, कुछ विद्वान इसका अर्थ महानता से भी लेते हैं । 
श्रीमद् भागवत में महात्म्य के छह अध्याय हैं । 
इसमें मुख्य पात्र सूतजी, शौनकजी आदि ऋषि, व्यासजी, नारदजी, शुकदेवजी, धुंधकारी व गोकर्ण है ।

भागवत में कुल 12 स्कंध हैं । 
माहात्म्य इनके अतिरिक्त है । 
माहात्म्य सबसे पहले बताया गया है । 
छह छोटे अध्यायों में बंटे माहात्म्य की कथा नारदजी की भक्ति से भेंट के साथ शुरू होती है । 
नारदजी पृथ्वी पर आते हैं और कलियुग में पृथ्वी की दुर्दशा देखकर दु:खी होते हैं । 
तब यमुना के तट पर उन्हें एक स्त्री दिखाई देती है । 
पूछने पर पता चलता है वह भक्ति है । 
उसके साथ दो पुत्र भी मिलते हैं जो थके हुए हैं । 
एक ज्ञान है दूसरा वैराग्य । 
भक्ति के निवेदन पर नारदजी दोनों पुत्रों को नींद से जगाते हैं और उनकी थकान दूर करते हैं । 
कलियुग में धर्म की स्थापना के लिए भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को भागवत का माहात्म्य बताया जाता है और तीनों संतुष्ट होते हैं । 
इसी के साथ माहात्म्य की कथा आगे बढ़ती है । 
इसी में आत्मदेव का प्रसंग है । 
आत्मदेव एक ब्राम्हण था । 
उसकी पत्नी धुंधुलि झगड़ालु थी । 
दोनों नि:संतान थे । 
एक दिन संतान न होने पर द़ु:खी आत्मदेव को एक संन्यासी मिला । 
संन्यासी ने आत्मदेव को एक फल दिया और कहा कि इसे पत्नी को खिलाना, तब पुत्र की प्राप्ति होगी । 
आत्मदेव ने फल अपनी पत्नी धुंधुलि को दिया लेकिन धुंधुलि ने फल खुद न खाते हुए अपनी बहन को दे दिया ।

बहन पहले से गर्भवती थी । 
उसने वह फल गाय को खिला दिया । 
कुछ समय बाद बहन को पुत्र हुआ और उसने वह पुत्र अपनी बहन धुंधुलि को दे दिया । 
आत्मदेव और धुंधुलि के इस पुत्र का नाम धुंधुकारी रखा गया । 
इधर जिस गाय को संन्यासी का दिया फल खिलाया गया था उसने भी मनुष्य रूप में एक शिशु को जन्म दिया । इसका नाम गोकर्ण रखा गया । 
दोनों बालक धुंधुकारी और गोकर्ण साथ पले-बढ़े । 
गोकर्ण ज्ञानी हुआ तो धुंधुकारी दुष्ट निकला । 
धुंधुकारी ने बुरी संगत में पड़कर पिता की सारी संपत्ति नष्ट कर दी । 
उसके ऐसे आचरण से दु:खी पिता आत्मदेव को दूसरे पुत्र गोकर्ण ने समझाइश दी और आत्मदेव मोह त्यागकर वन में चले गए । 
इधर धुंधुकारी ने अपनी मां को पीटना शुरू किया । 
वह पांच वेश्याओं के चक्कर में पड़ गया । 
वेश्याओं ने उससे धन व आभूषण मांगे और नहीं देने पर उसकी हत्या कर दी । 
धुंधुकारी प्रेत बना । 
कुछ समय बाद गोकर्ण की अपने प्रेत बने भाई से मुलाकात हुई । 
तब गोकर्ण ने अपने प्रेत भाई धुंधुकारी को भागवत की कथा सुनाई और उसकी मुक्ति हुई । 
इस तरह भागवत के इस माहात्म्य के स्कंध में गोकर्ण और धुंधुकारी की कथा के माध्यम से भागवत सुनने के फायदे बताए गए हैं । 
धुंधुकारी जिन पांच वेश्याओं के चक्कर में थे वे प्रतीक रूप में इंद्रियां हैं । 
इंद्रियों के वश में पड़े धुंधुकारी का नाश हुआ और वह अकाल मृत्यु मर कर प्रेत बना । 
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 परोपकाराय फलन्ति वृक्षा: परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
 परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकाराय इदं शरीरम्।।
            
 
 
                                          ( hari krishnamurthy K. HARIHARAN)"
'' When people hurt you Over and Over think of them as Sand paper.
They Scratch & hurt you, but in the end you are polished and they are finished. ''
யாம் பெற்ற இன்பம் 
பெருக  வையகம் 
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