जय श्री शिव शक्ति जी की जी --- कथा सगर के साठ सहस्र पुत्रों की उतपति का वर्णन तथा माँ गंगा जी को कैसे धरती पर लाया गया !
श्री शिव महापुराण,अध्याय= बाइसवाँ,श्री दुर्गा पुस्तक भण्डार,खंड = एकादश
इतनी कथा सुनकर नारद जी ने कहा -हे पिता ! आप मुझे राजा के साठ सहस्र पुत्रों तथा असमंजस के जन्म का वृतांत सुनाने की कृपा करें !ब्रह्मा जी बोले -हे पुत्र ! सुनो राजा सगर की दो रानियां थीं !पहली का नाम सुमति तथा दूसरी का नाम केशिनी था ! इन दोनों रानियों ने अपनी सेवा दुवारा उर्ज्जमुनि को अत्यंत प्रसन किया !जब मुनि ने उन्हें वार मांगने के लिए कहा उस समय सुमति ने ये कहा - हे मुनि ! आप मुझे साठ सहस्र पुत्र दीजिये,केशिनी ने ये कहा की हे मुनि मैं केवल एक ही पुत्र चाहती हूँ ! जब मुनि ने उन्हें अभिलषित वार प्रदान किया !फलसवरूप सुमति के गर्व से एक तुंबी उत्पन हुई,उस तुंबी में छोटे-छोटे साठ सहस्र बीज भरे हुए थे,जब उस तुंबी को घृत के कुण्ड में डाला गया,तब उससे साठ सहस्र बालक उत्पन हुए,वे सब बालक कपिल देव मुनि की क्रोधाग्नि में पड़कर भस्सम हो गए,
हे नारद ! मुनि के आशीर्वाद से केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया १वेह संसार में पंचजन्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ,पंचजन्य से अंशुमान तथा अंशुमान से राजा दिलीप की उत्पति हुई ,अंशुमान ने अपने पुत्र दिलीप को राज्य देकर गंगा जी को लाने के लिए घोर तपस्या की किन्तु मनोरथ पूर्ण होने से पहले ही वे मृत्यु को प्राप्त हो गए,तत्पश्चात राजा दिलीप भी अपने पुत्र भगीरथ को राज्य देकर गंगा जी को पृथ्वी पर लेन के लिए टप करने लगे किन्तु वे भी अपने पिता की भाँती मनोरथ प्राप्त होने से पहले स्वर्गवासी हो गए,तदपुरांत भगीरथ ने अपने टप दुवारा भगवती गंगा जी को प्रसन किया !
हे नारद ! भगीरथ के टप से प्रसन होकर गंगा जी ने उसे दर्शन देकर ये कहा - हे राजन मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार पृथ्वी पर आने को तयार हूँ किन्तु मेरे वेग को रोकने की समर्था संसार में किसी में भी नहीं है,जिस समय मैं आकाश से निचे गिरूंगी उस समय अपने वेग के कारण पृथ्वी को फोड़ती हुई पाताल में चली जाउंगी,इसलिए तुम सर्वप्रथम तपस्या दुवारा भगवान शिव को प्रसन करो,वह ही मेरे वेग को रोकने में समर्थ हैं,जब मैं पृथ्वी पे गिरूंगी तो वह मुझे अपनी जटाओं में धारण कर लेंगे ,ताड़पुरान्त मैं उनकी जटाओं में से निकलकर मंद गति से बहती हुई तुम्हारी अभिलाषा को पूरा करुँगी,उसके बाद भगीरथ ने भगवान श्री शिव की कठिन तपस्या शुरू करदी .तब भगवान श्री शिव ने प्रसन होकर भगीरथ को अपने दर्शन दिए और माँ गंगा जी को अपने मस्तक पर धारण करना स्वीकार कर लिया,उस समय राजा भगीरथ को अत्यंत आनंद प्राप्त हुआ !
राजा भगीरथ की प्रार्थना पर जिस समय माँ गंगा जी आकाश से गिरीं उस समय तीनों लोकों में हाहाकार मचने लगा,तब भगवान शिव अपने आसान से खड़े हुए और अपनी जटाओं को उन्होंने खोल दिया,गंगा जी उनकी जटाओं में इस प्रकार लुप्त हो गईं की दिखाई भी नहीं देती थीं,ताड़पुरान्त राजा भगीरथ जी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने अपनी जाऊं में से गंगा जल की तीन बूँदें निचोड़ दीं !उनमे से पहली धारा पाताल को चली गई जिस का नाम भोगवती प्रसिद्ध है,दूसरी धारा आकाश को गई जिसे मन्दाकिनी कहा जाता है तीसरी धारा राजा भगीरथ के साठ पृथ्वी पर आयी जो की भगीरथ गंगा के नाम से प्रसिद्ध हुई ! फिर राजा भगीरथ गंगा जी को अपने साठ लिए उस स्थान पर पहुंचे जहाँ सगर के साठ सहस्र पुत्रों की भस्सम एक ढेर के रूप में पड़ी थी,गंगा जल का स्पर्श पाते ही सभी राजपुत्र मुक्त होकर स्वर्ग को चले गए,अस्तु राजा सगर के उपरांत इश्वाकु वंश में निम्नलिखित राजाओं ने राज्य किया-असमंजस,अंशुमान,दिलीप,भगीरथ,श्रुतनाभि,सिंधुदीप,अयुतायु,ऋतुपर्ण,अनपूर्ण,मित्रसह,(कल्माषपाद)ऋषभ ,अनरण्य,मृडदुर्म तथा निषध (खट्वांग) राजा खट्वांग चक्रवती राजा हुआ,अतः उन्हें चकर्वती कहकर सम्बोधित किया जाता है.हे नारद जो भी इस कथा को पढ़ेगा,सुनेगा अथवा दूसरों को सुनाएगा उसे शिव लोक की प्राप्ति होगी और उसका हर मनोकामना पूर्ण होगी.
बोलिए भगवान श्री शिव और शक्ति जी की जय जय जय .
प्रभु श्री शिव शक्ति जी के चरणों की सेवा का दीवाना ------------Mr.Rana
No comments:
Post a Comment