Sunday 14 September 2014

आज सच जानने के लिए किसी को फुर्सत नही | सीधे सादे लोगो को खूब उल्लू बनाया गया,




खुल गया - भेद - मुर्गी - पहले - आई थी,
तब कोई भी कुछ नही "जानता" था,
आज सच जानने के लिए किसी को फुर्सत नही |
सीधे सादे लोगो को खूब उल्लू बनाया गया,
आज भी बहुत से लोग - बुद्धि जीवी - बने घूम रहे है,
लोगो को समझा रहे है - "अंडा" - पहले आया था |
६७ साल से इस देश की प्रजा पर लादा गया "राजतंत्र" इस देश की प्रजा के लिए एक "भययुक्त रचना" के स्वरूप में बदलता जा रहा है ।
उस की "उत्पत्ति अन्याय" की "आधारशीला" पर की गयी है ।
"स्थानीय प्रजा" के हितों का नाश, तथा आंतरराष्ट्रिय "श्वेत प्रजा" के हितों को बढाने की दिशा में यह देश हिरन की तरह कुलांचे मारने लगा है ।
'विकास' शब्द का सही अर्थ छूपा के रख्खा है । "विकास" के नाम प्रजा को "निचोड़ा" जाता है, लेकिन 'विकास' का अर्थ, 'किस के लिए विकास' उस बात को परदे के पिछे छुपा लिया जाता है । 
इस देश की प्रजा पर जीतना जुल्म चंगीजखान, नादिरशाह या मुगलों ने नही किया उस से अनेक गुना जुल्म अंग्रेजों ने किया है । और अंग्रेजों के जुल्म से बढ कर जुल्म उन के बैठाए प्यादों ने किया है । 
उस के फल स्वरूप इ.स २०४० तक युरोपियन युनियन प्रजा का संपूर्ण स्वराज इस देश में स्थापित हो जाए तो आश्चर्य नही होना चाहीए ।
गिने चुने अंग्रेजी पढे आदमी द्वारा खेती के बारे में नीतियां बनाइ जाए और देश के तमाम किसानों पर लागू करे, जैसे पशु संवर्धन विषयक नीति गिने चुने लोग द्वारा लादी जाए,
बिलकुल ऐसे ही "गिने चुने" लोग इकठ्ठे हुए और नया "संविधान" बना कर देश की प्रजा के माथे पर ठोक दिया है । इस देश की संस्कृति के विरुध्ध, रीति रिवाजों के विरुध्ध, जीवन के उद्देश के विरुध्ध "संविधान" बनाने का "अधिकार" उन "अंग्रेजी पढे लिखों" को किसने दिया था ? कब दिया था ?
देश का चुनाव तो -- १९५२ में हुआ था, तो फिर १९४६ में - "संविधान सभा" को "नया संविधान" बनाने की "सत्ता" कैसे प्राप्त हो गयी ?
अगर "संविधान सभा" का पूरा गठन ही "अन्याय" पर "आधारित" था तो फिर उस के द्वारा निर्मित संविधान भी अन्याय की आधार शिला पर नही है ? तो फिर संविधान के आधार से बनी पार्लामेन्ट और उस में पास हुए कानून में न्याय का तत्व कहां से होगा ?
जब ये सवाल श्री मिनु मसानी को पूछा गया उन्हों ने इस भावार्थ में जवाब दिया । " I do not know anything about the legality of the Conrtituent Assembly, and in this connection you may refer to Mr. Seshagiri Rao at Bangalore.
संविधान के प्रीएसेम्बल में लिखा है "We, the people...", 'We' यानी ये कोन लोग थे ?
संविधान की रचना कर ने वाले २००-५०० आदमी "We, the people..." नही बन जाते । सब कुछ बमा बम चलाया है ! 
श्री नानी पालखीवाला से लेकर श्री सोली सोराबजी तक के महानुभावों ने इस प्रश्न का स्पर्श किया होगा या नही ? या उस का सही जवाब उन के पास होगा कि नही ?
संविधान की कलमों को बारीकी से अभ्यास करोगे तो स्पष्ट दिखाई देगा कि उस में न्याय अंश से अधिक अन्याय के तत्व ज्यादा जुडे हुए है । संविधान सभा को संविधान इस देश की प्रजा के सर्वांगिय विकास के लिए बनाना था या युरोपियन प्रजा के हितों को इस देश में विकास के लिए संविधान बनाना था ?
इस देश के ऋषि मुनियों के बनाये संविधान के विरुध्ध जा कर, नये संविधान में राज्यों को नही करने के कार्य राज्यों को क्यों सौंपे गये हैं ?
व्यापार करने का काम राज्य का नही है, खेती करने का काम राज्य का नही है, पशुपालन का काम राज्य का नही है; फिर भी इन सभी कार्य में राज्य की दखल के कारण किसानों के, व्यापारियों के, पशुपालकों के धंधे बरबाद कर उस के साथ जुडे हजारों साल पूराने और सिध्ध हुए खेती विज्ञान, पशु विज्ञान और व्यापार कला को तोड मरोड दिया है ।
संविधान की एक एक कलम (दफा) अन्याय के आधार पर रची गयी है । लोर्ड वेवेल, पॅथिक लोरेन्स, लोर्ड माउन्टबेटन, स्टेफर्ड क्रिप्रा के हाथ की कठपूतली बन कर देश के अंग्रेजी पढे लोगों ने इस देश की प्रजा पर काला कहर मचाया है, उन के समग्र जीवन को नोच डाला है ।
स्वराज के सुन्दर नाम के नीचे प्रजा जीवन के तमाम पहलु को पराधिन बनाने का भोंडा नाटक -जो आंतरराष्ट्रिय रेकेट चल रहा है, 
उस का भांडा फोडने का कोइ उपाय सूझता है ? प्रजा को पराधिन बनती रोकने का कोइ उपाय सूझता है ?
नकली स्वराज्य पाने के लिए जो प्रयास करने पडे थे उस से कहीं अधिक प्रयास सच्चा स्वराज प्राप्त करने के लिए करने होंगे । शोरगुल और कोहराम के नीचे दबा दिए सत्य की तरफ विद्वानों का ध्यान खिंचना पडेगा ।
 परोपकाराय फलन्ति वृक्षा: परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
 परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकाराय इदं शरीरम्।।
            
 
 
                                          ( hari krishnamurthy K. HARIHARAN)"
'' When people hurt you Over and Over
think of them as Sand paper.
They Scratch & hurt you,
but in the end you are polished and they are finished. ''
யாம் பெற்ற இன்பம் பெருக  வையகம் 
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