Monday 8 September 2014

......... " मेरे मन की बात " ..........

ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो ......
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......... " मेरे मन की बात " ..........

ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो ........
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जीवन एक क्रिकेट है , धरती की विराट पिच पर समय बॉलिंग कर रहा है ... शरीर बल्लेबाज है , परमात्मा के आयोजन पर अम्पायर धर्मराज हैं ... बीमारियां फील्डिंग कर रही हैं , विकेटकीपर यमराज हैं , प्राण विकेट हैै ... डे - नाइट मैच में हमें रचनात्मकता के जलवे दिखाने हैं ... सांसों के सीमित ओवर में सृजन के रन बनाने हैं ... गिल्लियां उड़ना सांस टूट जाना है ... एलबीडब्ल्यू यानी हार्ट - अटैक ... दुर्घटना में मरने वाला रन आउट कहलाता है और सीमा पर शहीद होने वाला कैच आउट ... आत्महत्या ... हिट विकेट व हत्या ... स्टम्प आउट हो जाना है ...........
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कभी कभी कुछ खिलाड़ी जल्दी पैवेलियन लौट जाते हैं , लेकिन पारी ऎसी खेलते हैं कि कीर्तिमान बना जाते हैं ... घर आए अतिथि को भोजन के लिए पूछा करो , यह नहीं पूछ सकते , तो पानी के लिए पूछो , पानी की नहीं पूछ सकते ... तो बैठने के लिए आसन दो ... यह नहीं दे सकते , तो दो मीठे बोल बोला करो ... मीठा बोल नहीं सकते , मुस्कुराहट नहीं दे सकते ... तो चुल्लू भर पानी में डूब मरो ... आदमी स्मार्ट मुस्कुराहट से बनता है ... हंसना पुण्य है और हंसाना परमपुण्य ... जब हंसते हैं , तो आप ईश्वर की आराधना करते हैं ... जब किसी रोते को हंसाते हो , तो ईश्वर आपकी आराधना करता है ... दुनिया के सामने रोने की जरूरत नहीं है ... जब पांच सेकंड मुस्कुराने से फोटो अच्छी आ सकती है , तो जिंदगी भर मुस्कुराने से जिंदगी क्यों नहीं अच्छी हो सकती ............
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उठो ! जागो ! रुको मत .... जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो जाये ... कोई दूसरा हमारे प्रति बुराई करे या निंदा करे , उद्वेगजनक बात कहे तो उसको सहन करने और उसे उत्तर न देने से बैर आगे नहीं बढ़ता ... अपने ही मन में कह लेना चाहिए कि इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन ... जो अपने कर्तव्य कार्य में जुटा रहता है और दूसरों के अवगुणों की खोज में नहीं रहता उसे आतंरिक प्रसन्नता रहती है ..........
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जीवन में उतार-चढाव आते ही रहते हैं .......
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हँसते रहो , मुस्कुराते रहो .......
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ऐसा मुख किस काम का जो हँसे नहीं मुस्कुराए नहीं .......
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जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहता हैं , उनको दूसरों की आलोचनाओं से चिढना नहीं चाहिए ..........AM




 परोपकाराय फलन्ति वृक्षा: परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
 परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकाराय इदं शरीरम्।।
            
 
 
                                          ( hari krishnamurthy K. HARIHARAN)"
'' When people hurt you Over and Over
think of them as Sand paper.
They Scratch & hurt you,
but in the end you are polished and they are finished. ''
யாம் பெற்ற இன்பம் பெருக  வையகம் 
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