Sunday 14 September 2014

धन छोड़ा पर धर्म न छोड़ा.....


धन छोड़ा पर धर्म न छोड़ा.....

बंगाल के माल्दा जिले के केन्दूरपुर नामक गाँव में एक नुमाई नाम का बालक था जो बाद में एक अच्छे स्वयंसेवक के रूप में प्रसिद्ध हुआ। उसे बचपन में एक बार जोरदार बुखार आ गया और पैर में चोट लग गयी। अनेकों छोटे-मोटे इलाज करने पर बुखार तो मिट गया, किंतु घाव मिटने का नाम नहीं ले रहा था।

आखिरकार थककर किसी की सलाह से उसे बड़े अस्पताल में भर्ती कर दिया गया। वह अस्पताल ईसाई मिशनरी का था, अतः वहाँ उसके घाव को भरने के साथ-साथ नुमाई में ईसाइयत के संस्कार भरने का भी प्रयास किया जाने लगा। छोटे-से घाव को भरने के लिए उसे 5-6 महीने तक अस्पताल में रखा ताकि धीरे-धीरे उसका हृदय ईसाइयत के संस्कारों से भर जाये।

लेकिन वह बालक नुमाई अपने धर्म पर अडिग रहा और बोलाः "मैं हिन्दू हूँ और हिन्दू ही रहूँगा। तुम्हारे चक्कर में आकर मैं ईसाई बनने वाला नहीं हूँ।"

अंतिम प्रयास करते हुए ईसाई मिशनरीवालों ने उसके गरीब पिता से कहाः "इसके घाव भरने में 6 हजार रूपये खर्च हो गये हैं। तुम अपने लड़के से कह दो कि वह ईसाइयत स्वीकार कर ले। अगर वह ईसाइयत स्वीकार कर लेगा तो 6 हजार रुपये माफ हो जायेंगे, नहीं तो तुम्हें वे रुपये भरने पड़ेंगे जबकि तुम तो गरीब हो। तुम्हारे पास केवल 12 बीघा जमीन है। (उस समय एक बीघा जमीन की कीमत एक हजार रुपये थी।) या तो तुम 6 बीघा जमीन दे दो जो कि तुम्हारा भरण-पोषण का एक मात्र आधार है या नुमाई को ईसाइयत स्वीकार करने के लिए राजी कर लो।"

तब पिता बोलाः "मैं धन का गरीब हूँ लेकिन धर्म का नहीं। धर्म बेचने के लिए नहीं होता। मैं 6 बीघा जमीन बेचकर भी 6 हजार रुपये तुम्हें दे दूँगा।"

उस गरीब पिता ने 6 बीघा जमीन बेचकर रुपये दे दिये, किंतु धर्म नहीं बेचा। उस बालक ने हिन्दू रहकर ही अपना पूरा जीवन ईश्वर के रास्ते लगा दिया। कितनी निष्ठा है स्वधर्म में !
कभी भी अपने धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए वरन् अपने ही धर्म में अडिग रहकर, अपने धर्म का पालन करते हुए अपने धर्म और अपनी संस्कृति के गौरव की रक्षा करनी चाहिए। इसी में हमारा कल्याण है।


 परोपकाराय फलन्ति वृक्षा: परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
 परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकाराय इदं शरीरम्।।
            
 
 
                                          ( hari krishnamurthy K. HARIHARAN)"
'' When people hurt you Over and Over
think of them as Sand paper.
They Scratch & hurt you,
but in the end you are polished and they are finished. ''
யாம் பெற்ற இன்பம் பெருக  வையகம் 
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