नरेंद्र मोदी को झूठा साबित करने के लिए भारत व बिहार के इतिहास को झुठलाना कहां तक उचित है ?
- Category: इतिहास
- Published on Tuesday, 12 November 2013 10:53
संदीप देव। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 अक्टूबर 2013 की अपनी पटना रैली में बिहार के गौरवपूर्ण अतीत की चर्चा की तो एक साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वामपंथी स्कूल से निकले पत्रकार उन पर हमलावर हो उठे! सभी एक सुर में उन्हें झूठा और देश के इतिहास-भूगोल की जानकारी से अनभिज्ञ साबित करने के लिए गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाने लगे! नीतीश कुमार तो बिहार के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने और झूठा साबित करने के लिए उन्होंने बिहार के गौरवपूर्ण इतिहास को ही झुठलाने और उस पर पर्दा डालने की जी तोड़ कोशिश शुरू कर दी।
जिस पाकिस्तान का नामो निशान 1947 से पहले दुनिया के नक्शे में नहीं था, नीतीश कुमार ने प्राचीन भारत के विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय तक्षशिला को पाकिस्तान में बता डाला! यहीं नहीं, जिस गुप्त शासनकाल में बिहार को नालंदा जैसा विश्वविद्यालय मिला, उस गुप्त शासन के नामोनिशान को ही नीतीश कुमार ने तत्कालीन मगध व आज के बिहार से मिटाने का प्रयास किया! तत्कालीन मगध और वर्तमान बिहार में मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त ने भी शासन किया था तो गुप्त वंश के चंद्रगुप्त द्वितीय यानी चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने भी, लेकिन मोदी को नीचा दिखाने के लिए नीतीश कुमार ने यह दर्शाने की कोशिश की कि मोदी को 'मौर्य' और 'गुप्त' वंश के बीच का अंतर ही मालूम नहीं है!
मैंने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, 'भाजपा के कुछ नेता देश के इतिहास व भूगोल को बदलने पर तुले हैं'- जैसे बयान देने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं वामपंथी पत्रकार व चैनल जैसे एनडीटीवी व रवीश कुमार जैसों के लिए प्राचीन बिहार या कहिए तत्कालीन आर्यावर्त के इतिहास को ज्यों का त्यों रखने का प्रयास किया है। इसके लिए वामपंथी व अंग्रेज इतिहासकारों से लेकर 'कामायनी' जैसे महाकाव्य की रचना करने वाले जयशंकर प्रसाद जी की पुस्तक 'चंद्रगुप्त' सहित कई अभिलेखों की सहायता ली गई है। इसलिए इस इतिहास को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबंधित इतिहासकारों की प्रकल्पना कह कर अपनी मूर्खता पर पर्दा डालने वालों के लिए यहां कोई गुंजाइश नहीं है!
कल के मगध और आज के बिहार से संचालित शासन तक्षशिला ही नहीं उससे आगे काबुल तक था!
वर्तमान बिहार व तत्कालीन मगध राज्य के संबंध में सबसे प्राचीन जानकारी 'सतपथ ब्राह्मण' से प्राप्त होती है। आधुनिक बिहार व प्राचीन मगध राज्य का उल्लेख हमें 'महाजनपद काल' अर्थात करीब 650 ई पू से मिलता है। वर्तमान बिहार का नामाकरण यहां अवस्थित बौद्ध विहारों के आधार पर हुआ। 'बिहार' शब्द का प्रयोग इस प्रांत के लिए सबसे पहले तुर्कों ने किया था। बिहार की राजधानी 'पटना' का नाम नदी का पत्तन होने के कारण पड़ा।
मौर्य वंश भारतवर्ष का पहला राजवंश था, जिसने भारत को एकीकृत किया। चंद्रगुप्त के नेतृत्व में मौर्य सम्राज्य का विस्तार अफगानिस्तान के काबुल व गांधार के तक्षशिला से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र एवं दक्षिण में कर्नाटक तक विस्तृत था। जो लोग भारत के एकीकरण का श्रेय मुगलशासक अकबर या औरंगजेब या फिर ब्रिटिश हुकूमत को देते हैं, वह दरअसल मौर्य और गुप्त वंश के इतिहास से या तो अनभिज्ञ हैं या फिर देश की वर्तमान पीढ़ी का परिचय वास्तविक इतिहास से नहीं कराना चाहते! ऐसा ब्रिटिश और विदेश आयातित वामपंथी विचारधारा वाले इतिहासकारों के द्वारा भारत का इतिहास लेखन की वजह से हुआ है!भारत की श्रेष्ठता को हीन प्रदर्शित करना एवं भारत के एकीकरण को विदेशी शासकों की दूरदर्शिता का परिणाम बताना ही विदेशी सोच वाले इतिहास लेखकों का उद्देश्य रहा है!
तत्कालीन मगध (आज का बिहार) और उसकी राजधानी पाटलीपुत्र (आज का पटना) का उत्कर्ष:
हर्यक वंश: मगध राज्य का उत्कर्ष 545 ई पू से 412 में हर्यक वंश के शासन से हुआ। इस वंश का सबसे प्रतापी राजा बिंबिसार (545-493 ई पू) हुआ, जिसने गिरिव्रज अर्थात आज के राजगीर को अपना राजधानी बनाया था। बिंबिसार की हत्या उसके ही पुत्र अजातशत्रु ने किया और वह सिंहासन (493-461 ई पू) पर बैठा। अजातशत्रु गौतम बुद्ध के समकालीन था। उसके शासन के आठवें वर्ष में सिद्धार्थ को निर्वाण प्राप्त हुआ था और वह महात्मा बुद्ध बने थे।
अजातशत्रु की हत्या भी उसके पुत्र उदायिन(461-445 ई पू) ने किया और राजगद्दी पर बैठा। उसने ही अपनी राजधानी गिरिव्रज से हटाया और गंगा व सोन नदी के संगम पर स्थित पाटलीपुत्र नामक एक नए नगर की स्थापना की, जो आज का पटना है। लेकिन पाटलीपुत्र का विकास हर्यक वंश के आंतिम शासन नागदशक ने किया था, जिसके कारण उसे ही पाटलीपुत्र का वास्तविक निर्माणकर्ता (निर्माण वर्ष- 455 ई पू) माना जाता है।
शिशुनाग वंश: हर्यक वंश के बाद शिशुनाग वंश(412-345 ई पू) की स्थापना अंतिम हर्यक शासक नागदशक को सत्ता से बेदखल कर उसके ही अमात्य शिशुनाग ने किया था। शिशुनाग ने अवंति व वत्स जनपद को विजित कर मगध में मिलाया था, जिसके बाद मगध का विस्तार मालवा से लेकर बंगाल तक हो गया था। शिशुनाग वंश ने पाटलीपुत्र की जगह अपनी राजधानी वैशाली को बनाया।
कालाशोक: शिशुनाग वंश के बाद कालाशोक या काकवर्ण(394-366 ई पू) ने शासन किया। उसने पुन: वैशाली से हटाकर अपनी राजधानी पाटलीपुत्र को बनाया। उसके शासनकाल में वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति(383 ईपू) का अयोजन किया गया था, जिसमें बौद्ध धर्म दो संप्रदायों 'स्थविर' और 'महासांघिक' में विभाजित हो गया था। कालाशोक की मृत्यु के बाद 22 वर्ष अर्थात 344 ईपू तक उसके उत्तराधिकारियों ने शासन किया। नंदिवर्धन या महानंदिन शिशुनाग वंश का अंतम शासक था।
नंद वंश: महापदमनंद ने शिशुनाग वंश का अंत कर नंद वंश (344-322 ई पू) की नींब डाली। इस वंश का संस्थापक महापदमनंद एक नाई माता की संतान था। उसके आठ पुत्रों में से अंतिम पुत्र धननंद सिकंदर का समकालीन था। इसके शासनकाल में ही सिकंदर ने 325 ई पू में भारत के पश्चिमी तट पर आक्रमण किया था। धननंद का विनाश कर चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।
मौर्य वंश: चंद्रगुप्त ने 323 ई पू से 298 ईपू तक शासन किया था। चंद्रगुप्त की सबसे महत्वपूर्ण विजय 305 ई पू में यूनानी शासक सेल्यूकस के विरुद्ध थी। सिकंदर जब भारत आया था तो सेल्यूकस उसकी सेना का सेनापति था, लेकिन सिकंदर की हार की टीस उसे सालती रही। यूनान में सत्ता हासिल करने के बाद उसने फिर से भारत पर आक्रमण किया, जिसमें उसकी जबरदस्त पराजय हुई। इस पराजय के बाद मशहूर पुस्तक 'इंडिका' के लोखक मेगास्थनीज राजदूत के रूप में चंद्रगुप्त के दरबार में 14 वर्षों तक रहा था और वह तक्षशिला में रहता था। चंद्रगुप्त की सीमाएं उत्तर पश्चिम में ईरान से लेकर दक्षिण में वर्तमान उत्तरी कर्नाटक एवं पूर्व में मगध से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक फैली हुई थी।
चंद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र बिंदुसार(298-272 ई पू) गद्दी पर बैठा। बौद्ध साहित्य 'दिव्यदान' के अनुसार, बिंदुसार के समय तक्षशिला में दो विद्रोह हुए थे। पहली बार उसे दबाने के लिए उसने अपने पुत्र आशोक को और दूसरी बार पुत्र सुसीम को भेजा था। बिंदुसार के समय यूनानी शासक एंटियोकस ने डाइमेकस नामक राजदूत को उसके दरबार में भेजा था। यूनानी लेखक बिंदुसार को अमित्रोचेट्स(शत्रु नाशक) कहते थे।
बिंदुसार के बाद उसका पुत्र अशोक (273-232 ई पू) राजगद्दी पर बैठा था। आज जिस कश्मीर घाटी से हिंदुओं का सफाया कर दिया गया है, उसकी राजधानी श्रीनगर की स्थापना अशोक ने ही की थी। नेपाल में अशोक ने ललितपाटन नामक नगर की स्थापना की थी। अशोक की पुत्री चारुमती ने नेपाल में ही देवपत्तन नामक नगर बसाया था।
अशोक के समय मगध साम्राज्यके पांच प्रांतों का उल्लेख मिलता है- उत्तरापथ (तक्षशिला), अवंतिराष्ट्र (उज्जयिनी), कलिंग (तोसली), दक्षिणापथ (सुवर्णगिरी) और प्राशी(पाटलीपुत्र)। प्रांतों का शासन राजवंशीय कुमार या आर्यपुत्र नामक पदाधिकारियों द्वारा होता था।
शुंग वंश: अंतिम मौर्य शाक वृहद्रथ की हत्या उसके ही सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की और शुंग वंश की नींब रखी। शुंग शासकों ने पाटलीपुत्र से हटाकर विदिशा को अपनी राजधानी बनाया। उनके समय विदिशा और पाटलीपुत्र के अलावा अयोध्या एवं जालंधर महत्वपूर्ण नगर थे। शुंग शासन काल में ही मनु ने 'मनुस्मृति' की रचना की। इसी काल में पाणिनी के ग्रंथ अष्टाध्यायी पर पतंजलि ने महाभाष्य लिखा।
शुंग वंश से लेकर गुप्त वंश तक का कालखंड: शुंग वंश के बाद बिहार पर कण्व राजवंश, उसके बाद कुषाण राजवंश एवं उसके बाद गुप्त वंश ने वर्तमान बिहार प्रदेश पर शासन स्थापित किया। गुप्त लोग कुषाणों के सामंत थे और उन्होंने कुषाण सम्राज्य के ध्वंशावशेष पर ही गुप्त वंश की स्थापना की थी। गुप्त वंश के प्रसिद्ध राजा चंद्रगुप्त द्वितीय अर्थात चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने तत्कालीन पाटलीपुत्र पर अपना शासन स्थापित किया था।
मगध व पाटलीपुत्र पर गुप्तवंश का शासन: (275-550 ई.) गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की थी। श्रीगुप्त के बाद उसका पुत्र घटोत्कच और उसके बाद उसका पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम (320-335 ई) शासक बना था। चंद्रगुप्त प्रथम ने महाराजाधिराज की उपाधि ग्रहण की थी। चंद्रगुप्त प्रथम ने ही गुप्त संवत (319-320 ई) चलाया था।
चंद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र समुद्रगुप्त गददी पर बैठा। उसने पूरे भारत का एकीकरण किया। वह कभी युद्ध में पराजित नहीं हुआ, जिसके कारण उसे 'भारत का नेपोलियन' कहा जाता है। समुद्रगुप्त के पास एक विशाल नौ सेना भी थी। उसने अवश्वमेध यज्ञ भी किया था।
समुद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय (380-412 ई) गददी पर बैठा। चंद्रगुप्त द्वितीय की प्रथम राजधानी पाटलीपुत्र ही थी। बाद में उज्जैन को उसने अपनी द्वितीय राजधानी बनाया। शक विजय के बाद उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की। 'गढ़वा शिलालेख' में उसे 'परम भागवत' कहा गया है।
चंद्रगुप्त के उज्जैन स्थित दरबार में कालिदास व अमर सिंह जैसे कई विद्वान थे, जिसमें से अधिसंख्य तत्कालीन मगध व आज के बिहार प्रांत से ही आते थे। 'अभिज्ञानशाकुंतलम' व 'रघुवंश' जैसे महाकाव्य के रचयिता कालिदास, 'कामसूत्र' के रचयिता वात्स्यायन, महान गणितज्ञ आर्यभट्ट, ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर जैसे विद्वान चंदग्रुप्त के दरबार की शोभा थे और उस वक्त के मगध प्रांत से ही आते थे। दशमलव प्रणाली का आविष्कार गुप्तकाल में ही हुआ।
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के बाद उसका पुत्र कुमार गुप्त (414-455 ई) शासक बना। बिहार के विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय नालंदा विवि एवं नालंदा बौद्ध विहार की स्थापना गुप्त शासक कुमार गुप्त ने की थी। कुमार गुप्त का शासन सौराष्ट्र यानी आज के गुजरात से लेकर बंगाल तक फैला हुआ था।
कुमार गुप्त के बाद स्कंदगुप्त (455-467 ई) गददी पर बैठा। उसने चंद्रगुप्त द्वितीय के दो राजधानी के सिद्धांत को समाप्त कर दिया और मगध की राजधानी पाटलीपुत्र से हटाकर उज्जैन ले गया। आज के बिहार की एक प्रमुख जाति कायस्थ का उदभव भी गुप्त वंश के समय ही हुआ और उनका विकास तत्कालीन मगध व उसकी राजधानी पाटलीपुत्र के आसपास खासतौर पर हुआ।
हूण आक्रमण ने गुप्त सम्राज्य सहित पाटलीपुत्र का वैभव नष्ट कर दिया: स्कंदगुप्त के समय मध्य एशिया की खानाबदोश जाति हूण ने पांचवीं शताबदी ई में भारत पर आक्रमण किया। हूणों के पहले आक्रमण (455 ई) को स्कंदगुप्त ने विफल कर दिया, लेकिन बाद के वर्षों में उन्होंने बड़ी संख्या में आक्रमण किया और गुप्त सम्राज्य को भयंकर आर्थिक संकट में डाल दिया। इस संकट के कारण सबसे अधिक स्वर्ण मुद्रा चलाने वाले गुप्तों को अपने सिक्कों में मिलावट करनी पड़ी।
हूणों के आक्रमण लगातार होने लगे। एक समय उनके नेता तोरमाण ने 500 ई के आस-पास मालवा को गुप्तों से स्वतंत्र करा लिया और उसका स्वतंत्र शासक बन गया। तोरामाण का उत्तराधिकारी उसका सेनापति कराल बना, जिसने तत्कालीन पंजाब में साकल अथवा स्यालकोट को अपनी राजधानी बनाया। मालवा के राजा यशोधर्मा और मगध के गुप्त राजा नरसिंह बालादित्य ने संयुक्त प्रयास से 528 ई में कराल को परास्त कर दिया, लेकिन तब तक हूणों के लगातार आक्रमण से गुप्त साम्राज्य खोखला हो गया था। कालांतर में हूण शासक 'मिहिरकुल' के आक्रमण से पाटलीपुत्र का वैभव सदा के लिए नष्ट हो गया।
वर्तमान बिहार कभी गुप्त शासन का अभिन्न अंग था, इसका सबूत निम्नलिखित अभिलेखों से परिलक्षित होता है:
चंद्रगुप्त द्वतीय समय के कुछ अभिलेख
think of them as Sand paper.
They Scratch & hurt you,
but in the end you are polished and they are finished. ''
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